पश्चिमी व्यवस्था यथा, विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, स्कूल की प्रचलित पद्धतियाँ श्रेष्ठ मनुष्य के निर्माण के मामले में लगभग विफल-सी

गोंडा। शिक्षा की पश्चिमी व्यवस्था यथा, विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, स्कूल की प्रचलित पद्धतियाँ श्रेष्ठ मनुष्य के निर्माण के मामले में लगभग विफल-सी हैं। भारत की आश्रम परंपरा का प्रदेय आज भी इन नव विकसित संस्थानों से अधिक है। भारत की आश्रम व्यवस्था पृथ्वी के सभी मानवों के लिए रही है, जहाँ आचार-विचार और व्यवहार के ठहरने अर्थात संस्कार पर पूरा जोर रहा है। ये बातें श्री लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कॉलेज के शोध केंद्र द्वारा आयोजित अमृत महोत्सव व्याख्यान के अंतर्गत 'आश्रम परंपरा' के शोधक डॉ. पुष्कर मिश्र ने कहीं। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक दौर में आयातित शिक्षा प्रणाली ने भारतीय ज्ञान परंपरा को निष्प्राण करने का काम किया। आयातित पद बंधों, ज्ञान के अनुशासनों और शिक्षा पद्धति ने पुरातन भारतीय जीवन मूल्यों की उपेक्षा की। भारत की प्राचीन आश्रम परंपरा मनुष्य से जुड़े हुए तमाम संकटों का समाधान देती रही है। उन्होंने कहा कि आश्रम की शक्ति का स्रोत पाँच तरह के बल थे - धर्म-बल अध्यात्म-बल, नैतिक बल, तपोबल और जनबल। इसके साथ ही उन्होंने छह श्रेयस - धर्म, नीति, न्याय, सत्य, मर्यादा, प्रेम - का प्रतिपादन किया।
एलबीएस कॉलेज की प्रबंध समिति के सचिव उमेश शाह ने पुष्पगुच्छ प्राचार्य प्रो० रवींद्र कुमार ने आमंत्रित वक्ता डॉ० पुष्कर मिश्र जी को स्मृति चिह्न भेंट किया। मुख्य वक्ता का परिचय हिंदी विभाग के प्रोफेसर जयशंकर तिवारी द्वारा दिया गया। भूगोल विभाग के अध्यक्ष डॉ० रंजन शर्मा ने 'आश्रम परंपरा : समकालीन विमर्श एवं स्वरूप' विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की। 'अमृत महोत्सव व्याख्यान' कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन शोध केंद्र के प्रभारी प्रो० शैलेंद्र नाथ मिश्र ने किया। इस अवसर पर पूर्व प्राचार्य डॉ० डी० के० गुप्त, पूर्व प्राचार्य प्रो० वंदना सारस्वत, प्रो० राम समुझ सिंह, प्रो० बी०पी० सिंह, प्रो० शिव शरण शुक्ल, प्रो० मंशाराम वर्मा, प्रो० अभय कुमार श्रीवास्तव, डॉ० पुष्यमित्र मिश्र, मनीष शर्मा, अच्युत शुक्ल, विवेक प्रताप सिंह, डॉ. वंदना भारतीय सहित महाविद्यालय के सैकड़ों छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।
प्रो० शैलेंद्र नाथ मिश्र
प्रभारी, शोध केंद्र
श्री लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कॉलेज, गोंडा