सोनम कपूर के ससुर की कंपनी से ठगी: अपराधियों ने अपनाया ये खास तरीका, वारदात के बाद ही भारत सरकार ने बदले नियम

बॉलीवुड अभिनेत्री सोनम कपूर के ससुर हरीश अहूजा की कंपनी शाही एक्सपोर्ट से 27.61 करोड़ रुपये की ठगी मामले का साइबर थाना पुलिस ने शुक्रवार को खुलासा कर दिया है। पुलिस ने इस मामले में 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया है।

हालांकि, एक आरोपी की मौत हो चुकी है। अन्य आरोपियों को दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि से गिरफ्तार किया गया। आरोपियों ने 8 दिसंबर 2020 को डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (डीएससी) तैयार कर कंपनी के पैसों को एक अन्य फर्जी कंपनी में ट्रांसफर किया था। इस वारदात के बाद से भारत सरकार ने डीएससी बनाने की प्रक्रिया में भी बदलाव किया था। फिलहाल, पुलिस सभी आरोपियों को जेल भेजकर इसमें संलिप्त अन्य की तलाश कर रही है।

उप पुलिस आयुक्त (डीसीपी) मुख्यालय नीतीश अग्रवाल ने बताया कि गिरफ्तार आरोपियों की पहचान दिल्ली निवासी मनोज, मनीष, प्रवीण, मनीष मोगा और ललित जैन, कर्नाटक निवासी गणेश, महाराष्ट्र निवासी भूषण, राहुल, संतोष और तमिलनाडु निवासी सुरेश के रूप में हुई। इनमें से सुरेश व ललित जैन दोनों ममेरे भाई हैं। दोनों मुख्य साजिशकर्ता हैं और आठ साथियों के साथ मिलकर धोखाधड़ी की वारदात को अंजाम दिया था। पुलिस इस मामले में अन्य आरोपियों की भी तलाश कर ही है।

दिसंबर 2020 में दर्ज हुई थी शिकायत
डीसीपी नीतीश अग्रवाल के अनुसार, सेक्टर-28 स्थित शाही एक्सपोर्ट कंपनी के डिजिटल खाते से आठ दिसंबर 2020 को 27.61 करोड़ किसी अन्य कंपनी में ऑनलाइन ट्रांसफर किए गए। इन रुपयों को 154 डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (डीएससी) के माध्यम से ट्रांसफर किया गया था। इसकी जानकारी कंपनी के मालिक हरीश आहूजा को लगी। उन्होंने शिकायत पुलिस को दी। पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के लिए आर्थिक अपराध शाखा में भेजा। सितंबर 2021 में मामले की जांच साइबर थाना को सौंपी गई। पुलिस आयुक्त ने एसीपी क्राइम की अगुवाई में एक एसआईटी गठित कर जांच को आगे बढ़ाया।

ऐसे करते थे वारदात
डीसीपी के अनुसार, भारत सरकार द्वारा इंपोर्ट-एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए इंसेंटिव स्कीम चलाई जाती है, जिसमें भारत सरकार आयात-निर्यात करने वाली कंपनियों को एक विशेष प्रकार का लाइसेंस प्रदान करती है। इसके माध्यम से कंपनी को छूट देने के लिए कूपन दिए जाते हैं। यह कूपन ठीक उसी प्रकार होते हैं, जैसे पहले मोबाइल रिचार्ज कूपन हुआ करते हैं। जिस प्रकार रिचार्ज कूपन की एक वैल्यू होती थी, उसी प्रकार इन कूपन की लाखों रुपये की वैल्यू होती है। इसका उपयोग करके कंपनी द्वारा कोई सामान इंपोर्ट करने पर कंपनी को इंपोर्ट ड्यूटी में छूट मिल जाती थी।

डीसीपी ने बताया कि आरोपी सबसे पहले बड़ी-बड़ी कंपनियों के इंपोर्ट एक्सपोर्ट कोड को प्राप्त करके उनका रिकॉर्ड चेक करते थे और यह पता लगाते थे कि कंपनी के खाते में कुल कितनी रकम के कूपन उपलब्ध हैं। इसके बाद उस कंपनी के डायरेक्टर के नाम से फर्जी दस्तावेज तैयार करके, उन्हीं फर्जी दस्तावेज से फर्जी व्यक्ति का वीडियो शूट करवाकर, फर्जी डीएससी जारी कर लेते थे। फिर उस डीएससी के माध्यम से असली कंपनी की जानकारी के बिना, उसके विदेश व्यापार के बदले प्राप्त लाइसेंसों को धोखाधड़ी से अपनी फर्जी कंपनी के नाम ऑनलाइन ट्रांसफर कर लेते थे।

ऑटो चालक के नाम खुलवाई फर्जी कंपनी
डीसीपी के अनुसार, इस गिरोह में शामिल आरोपी भूषण और राहुल किसी भी व्यक्ति के नाम पर एक फर्जी कंपनी रजिस्टर करवा देते थे। साथी आरोपी गणेश जोकि पेशे से एक ऑटो ड्राइवर है, उसके नाम पर ब्लैक कर्व कारपोरेशन नाम से एक फर्जी कंपनी खुलवाई। आरोपी मनीष मोगा ने एक वीडियो शूट करवाई, जिसमें उसने अपने आप को शाही कंपनी का डायरेक्टर हरीश आहूजा बताया। इसी वीडियो के आधार पर हरीश आहूजा की एक फर्जी डीएससी आईडी बन गई। फर्जी डीएससी बनने के बाद इसमें उपलब्ध शाही कंपनी के 154 डिस्काउंट कूपन को ब्लैक कर्व कारपोरेशन के नाम ट्रांसफर कर लिया गया, जिसकी कुल कीमत 27.61 करोड़ रुपये थी।