विस्फोटक शक्तिशाली था, पटाखों के लाइसेंस में उलझ गई जांच;  सिर्फ थानेदार नहीं SP भी जिम्मेदार ड्रोन से शराब की तलाश करने वाली बिहार पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह से फेल है। 

भागलपुर में बड़े मिशन की तैयारी से बेखबर थी

पुलिस!:एक्सपर्ट बोले-

विस्फोटक शक्तिशाली था, पटाखों के लाइसेंस में उलझ गई जांच;


सिर्फ थानेदार नहीं SP भी जिम्मेदार

ड्रोन से शराब की तलाश करने वाली बिहार पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह से फेल है।

भागलपुर तातारपूर शराबी के नशे मैं पकड़े गये युवक को जमादार ने रिश्वत लेकर छोड़ दिया था

सिटी डीएसपी की जांच रिपोर्ट के आधार पर एसएसपी ने सिपाही पर कार्रवाई की है अब जांच रिपोर्ट में शराब का कोई उल्लेख नहीं सूत्र से विडियो मैं सच्चाई देखते हुए भी एसएसपी के कार्यवाही मैं शराब का कोई उल्लेख नहीं स्कूटी का चलान दिखला कर आम जनता की नजर मैं अनदेखा किया गया मामला इस तरफ की लापरवाही से आम जनता को पुलिस पर क्या भरोसा ।

भागलपुर में खुफिया इनपुट के बाद भी पुलिस बारूद के ढेर तक नहीं पहुंच पाई। विस्फोटों से निकले सवालों का सामना करने के बजाए पुलिस पटाखों के लाइसेंस में उलझ गई है। थानेदार पर कार्रवाई कर एक्शन का दावा करने वाले पुलिस अफसर भी सवालों की कड़ी बन गए हैं।

भागलपुर में हुई बड़ी वारदात पर बिहार झारखंड ने जब एक्सपर्ट से बात की तो पुलिस की बड़ी नाकामी सामने आई।

ब्लास्ट के बाद 4 घर पूरी तरह जमींदोज हो गए।

एक्सपर्ट बोले एसपी तक की जवाबदेही

बिहार के पूर्व डीजीपी रिटायर्ड आईपीएस अभयानंद बताते हैं कि ऐसी घटना के लिए थानेदार ही नहीं पुलिस कप्तान भी जवाबदेह हैं। बिहार पुलिस मैनुअल का हवाला देते हुए रिटायर्ड डीजीपी अभयानंद ने कहा कि लाइसेंस पर असलहा बनता है, तो संबंधित थानेदार के नियमित निरीक्षण की जिम्मेदारी होती है। अगर बिना लाइसेंस से बारूदों का करोबार हो रहा है तो पुलिस मैनुअल के अनुसार थानेदार से लेकर एसपी तक को जवाबदेह माना जाएगा।

घटना के बाद बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती हुई।
घटना के बाद बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती हुई।
पुलिस की निगरानी का मजाक
बिहार पुलिस में तैनात एक इंस्पेक्टर ने नाम का उल्लेख नहीं करने के साथ बताया कि इस घटना के पीछे पटाखों की गूंज नहीं है। विस्फोटक बड़ा

शक्तिशाली रहा है। घरों का मलबा और आस पास के लोगों का बयान यह गवाही दे रहा है कि पुलिस का सूचना तंत्र किसी बड़े मिशन की तैयारी से बेखबर रहा है। विस्फोट से फैक्ट्री का खुलासा हो गया, नहीं तो कोई बड़ी घटना भी हो सकती थी। हालांकि पुलिस इंस्पेक्टर ने इस मामले की सच्चाई सामने आने के लिए उच्च स्तरीय एजेंसी से जांच की बात कही है। पुलिस विभाग से जुड़े कर्मियों ने भी इस घटना के पीछे किसी बड़ी वजह की आशंका जाहिर करते हुए कहा है कि पुलिस की निगरानी के नाम पर मजाक चल रहा है।

एक्सपर्ट से जानिए पटाखा और विस्फोटक में अंतर

बिहार पुलिस के पूर्व डीजीपी अभयानंद बताते हैं कि पटाखा बनाने के लिए भी एक मानक तय है। वह ऐसे पटाखों का निर्माण नहीं कर सकते हैं, जिससे कोई बड़ी क्षति का खतरा हो। पटाखा आवाज के लिए बनाया जाता है, लेकिन बारूद की मात्रा बढ़ाकर कर उसमें लोहे के कण और टुकड़े डाल दिए जाएं तो वह खतरनाक हो जाता है। ऐसे विस्फोटक काफी संवेदनशील हो जाते हैं, हालांकि भागलपुर की घटना में फोरेंसिक जांच रिपोर्ट के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।

पुलिस विभाग के तकनीकी शाखा से जुड़े पुलिस एक्सपर्ट की माने तो धमाकों की गूंज और घटना स्थल पर पड़े मलबों का ढेर देख सामान्य पटाखों के बजाए बड़े विस्फोटक का संकेत दे रहे हैं। पूर्व डीजीपी अभयानंद का कहना है कि अगर बिना लाइसेंस के पटाखा बन रहा है या फिर चोरी से विस्फोटक तैयार किया जा रहा है तो यह इंटेलिजेंस और लोकल थानेदार से लेकर एसपी तक की जवाबदेही बनती है।

विस्फोट के बाद सवालों से घिरी बिहार पुलिस

भागलपुर में विस्फोट के बाद बिहार पुलिस सवालों से घिरी है। डीजीपी भी मान रहे कि बिना लाइसेंस के पटाखे बनाए जा रहे थे। ऐसे में कई सवाल हैं जिसका जवाब पुलिस के पास नहीं है। पुलिस घटना के लगभग 24 घंटे बाद तक इस बड़े विस्फोट की जड़ नहीं खंगाल पाई है।

33 साल बाद अपराध के लिए चर्चा में आया भागलपुर

बिहार का भागलपुर 33 साल बाद एक बार फिर बड़ी घटना को लेकर पूरे देश में चर्चा में है।

भागलपुर में 24 अक्टूबर 1989 हुए दंगे के बाद बिहार फिर ऐसे ही बड़ी घटना को लेकर पूरी तरह से सुर्खियों में है। 33 साल पहले ऐसे ही भागलपुर दंगों की आग में जलकर पूरे देश में छाया था। जस्टिस शमसुल हसन और आरएन प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक 24 अक्टूबर 1989 से लेकर 6 दिसंबर 1989 तक हुए दंगे में 1852 लोगों की मौत हुई।

इस घटना में 524 लोग घायल हुए जबकि बड़े पैमाने पर धार्मिक स्थल और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को क्षति पहुंचाई गई। भागलपुर दंगा के बाद 4 दिसंबर 2022 का दिन भी काला इतिहास बन गया है।

5 सवाल जिसका नहीं मिल रहा जवाब

चोरी से विस्फोटक बनाया जा रहा था, लेकिन जवाबदेही थानेदार की ही क्यों तय कर कार्रवाई की गई?

क्या पटाखों के बारूद से ऐसे बड़े विस्फोट हो सकते हैं, जिसमें एक धमाका में कई घर मलबा हो जाएं?

घनी आबादी में बारूदों का बड़ा खेल चल रहा था और इंटेलिजेंस को इसकी भनक क्यों नहीं लगी?
बड़े विस्फोट को पटाखों से जोड़कर पुलिस किसे बचाने का प्रयास कर रही?

विस्फोटक किसके लिए तैयार किए जा रहे थे जिसकी भनक पुलिस को नहीं लगी