नौकरी करने वाले किसान जयपाल मशरुम उत्पादन करके बने रोजगार प्रदाता

मशरूम उत्पादन से जयपाल की बदली तकदीर गांव में रहकर औरों को भी दिया रोजगार

प्राइवेट नौकरी छोड़ अब बने रोजगार उपलब्ध कराने वाले जयपाल

पुराने समय में एक कहावत कही जाती थी
उत्तम खेती मध्यम बान, करे चाकरी भीख निदान।
पहले के समय में खेती को अच्छा माना जाता था और व्यापार को मध्यम दर्जे का व्यवसाय, नौकरी को भीख के समान हेय दृष्टि से देखा जाता था। मगर बदलते परिवेश में धीरे धीरे लोगों का खेती से मोह भंग होता चला गया। अब कृषि क्षेत्र से मुंह मोड़ कर सभी सरकारी नौकरी की तरफ भाग रहें हैं। ऐसे समय में जयपाल नाम के एक शिक्षित बेरोजगार ने कुछ अलग हटकर करने की ठानी और सफल होकर दिखाया कि केवल नौकरी से ही नहीं बल्कि कुछ हुनर, तकनीक और दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। जब हमारी टीम ने जयपाल के मशरूम उत्पादन केंद्र का दौरा किया तो वहां का नजारा देखने लायक था। थरियांव कस्बे से थोड़ी दूर नरैनी मार्ग पर औरई गांव के पास रघुनाथ पुर गांव निवासी जयपाल की कहानी आपको जरूर पसंद आएगी। जब हम लोग पहुंचे कई स्थानीय मजदूर उनके फार्म में काम करते मिले। उन्होने बताया कि हमे रोजगार के लिए बाहर नही जाना पड़ता, गांव में ही अच्छा मेहनताना मिल जाता है। मशरूम के साथ ही लहसुन पपीता की सहफसली खेती और गृहवाटिका में अनेकों प्रकार की सब्जी उगाने से अतरिक्त आय और पर्याप्त सब्जियां मिल जाती है। जब मशरूम उत्पादक किसान जयपाल से बात कि तो उन्होने बताया कि पहले वह एक ईंट भट्ठे में नौकरी करते थे वहीं पर एक भट्टा मालिक से भेंट हुई जिन्होंने अपने कारोबार को बंद करके मशरूम उत्पादन शुरू किया था और मुनाफा कमाया। उनकी सलाह पर मैंने 2018 में मशरूम उत्पादन शुरू किया। पहली बार में ही अच्छा मुनाफा हुआ। फिर मैने अगले साल और मशरूम उत्पादन किया। साथ ही ट्रैक्टर भी खरीदे जिससे कृषि कार्यों में आसानी के साथ आमदनी में इजाफा हुआ। 2020 में कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिको की सलाह से मशरूम उत्पादन के बाद निकली कम्पोस्ट खाद का प्रयोग खेतों में करने से उपज में भी बहुत अधिक वृद्धि हुई। प्रगतिशील किसान जयपाल ने बताया कि आज उन्होने दुगने से भी ज्यादा मशरूम उत्पादन शुरू किया है। उनका जोर मात्रा से ज्यादा मशरूम की गुणवत्ता में रहता है जिस कारण बाजार में अच्छा भाव मिलता है और ग्राहक भी संतुष्ट हैं। उन्होने बताया कि गर्मी में ही भूसा, बांस, जिप्सम, गोबर की खाद, मुर्गी की बीट सहित अन्य सामाग्री इकट्ठा कर लेते हैं। बरसात खत्म होते ही मशरूम उत्पादन के लिए ढांचा तैयार किया जाता है। ढांचे में तैयार केसिंग और कम्पोस्ट में मशरुम स स्पान बोया जाता है। तापमान व सफाई का ध्यान रखना पड़ता है। कुछ ही दिनों में मशरुम की तुड़ाई शुरू हो जाती है जिसे अच्छे से पैक करके आसपास के जनपद के बाजारों में ले जा कर बेचते हैं। नवंबर से लेकर मार्च तक मशरुम का उत्पादन लेते हैं। कम जगह पर अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है। उन्होने बताया कि अब वो अपने किसान बेरोजगार साथियों की मदद करना चाहते हैं जो भी साथी चाहे हमारे पास आकर मशरूम उत्पादन की बारीकियां सीख सकते हैं उन्हे हम बीज से लेकर बाजार तक पूरी मदद करेंगे। उन्हे हाल ही में किसान दिवस समारोह में मशरूम उत्पादन में प्रथम पुरुस्कार भी मिला है। उन्होने बताया कि फतेहपुर जनपद के शिवराज पुर निवासी जैविक किसान वीरेंद्र यादव के आने से उनको जनपद स्तर में पहचान मिली और अब वह भी कंधे से कंधा मिलाकर अपने किसानों की मदद को आगे आए हैं। वहीं जैविक किसान वीरेंद्र यादव ने बताया की फतेहपुर में जयपाल जैसे अनेकों किसान हैं जिनके अनुभव को किसानों तक पहुंचाना अब हमारा मकसद है। निश्चित तौर पर जयपाल ने अपनी मेहनत और लगन से जो सफलता प्राप्त की है वह काबिले तारीफ़ है। वहीं कृषि विज्ञान केन्द्र थरियांव की गृह विज्ञान कार्यक्रम सहायक अल्का कटियार ने बताया कि इस समय अधिक पोषण मिलने के कारण जो लोग मांसाहार नही करते उनके लिए मशरूम पोषण का अच्छा स्रोत हैं। विभिन्न दवाइयों और खाद्य पदार्थों में मशरुम का प्रयोग आम हो गया है। यदि मशरूम उत्पादन के साथ वैल्यू एडीसन में जोर दिया जाय तो अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। मशरूम का आटा, आचार सहित कई सामाग्री आज बाजार में अच्छी जगह बना चुके हैं।