केंद्रीय राज्यमंत्री व सांसद रेणुका सिंह* एवं *छत्तीसगढ़ शिक्षामंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम के क्षेत्र में आदिवासी छात्र - छात्राओं के हाल है बेहाल*  *शिक्षा के नाम पर आदिवासी छात्राओं के साथ के

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छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी बाहुल्य जिला बलरामपुर के सभी विकासखंडों में केंद्रीय आवासीय एकलव्य विद्यालय प्रारंभ किया गया है जिससे आदिवासी छात्र - छात्राओं को सर्व सुविधा से परिपूर्ण गुणवत्ता शिक्षा के लिए केंद्र सरकार के द्वारा आदिवासी बाहुल्य जिलों में केंद्रीय आवासीय एकलव्य विद्यालय की सभी विकास खंडों में विद्यालय खोलने का निर्णय लिया जा चुका है
केंद्र की मोदी सरकार की माने तो छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी बाहुल्य जिलों के छात्र छात्राओं को उच्च एवं बेहतर शिक्षा के लिए इन विद्यालयों की स्थापना की गई है जिससे राज्यों में आदिवासियों के छात्र - छात्राओं को सर्व सुविधायुक्त केंद्रीय आवासीय विद्यालय में शिक्षा प्राप्त हो सके, इसी योजना के तहत बलरामपुर जिले में अब तक 6 विद्यालय प्रारंभ किए जा चुके हैं जिनमें पहले नंबर पर बलरामपुर जिला मुख्यालय का एकलव्य केंद्रीय विद्यालय प्रारंभ हुआ है जिस में पढ़ने वाले छात्र- छात्राओं को एकलव्य विद्यालय की भवन मिल चुकी है परंतु *वाड्रफनगर, रामचंद्रपुर ,राजपुर, शंकरगढ़, कुसमी* के आदिवासी छात्र- छात्राओं के लिए भवन निर्माण का कार्य तक प्रारंभ नहीं हुआ है जबकि *विद्यालय दो-तीन वर्षों से संचालित हो रही है*
छत्तीसगढ़ सरकार, केंद्र सरकार के आदिवासी समुदाय से जुड़े इस विद्यालय को बगैर सुविधाओं के ध्यान रखें आनन-फानन में खोल दिए क्योंकि आदिवासी वर्ग विद्यालय खुलने से खुश रहेगा एवं भोला - भाला होने के नाते ठगी के शिकार होने के बावजूद भी इसका विरोध नहीं करेगा यही कारण है कि आदिवासी छात्र छात्राओं की शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण एकलव्य आवासीय केंद्रीय विद्यालय को बगैर समुचित व्यवस्था के शुभारंभ कर दिया , आदिवासियों से जुड़े इस विद्यालय में सुविधाओं के नाम पर *सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवासीय परिसर से लेकर खेल मैदान तक* की व्यवस्था का पूरा- पूरा अभाव है हैरान करने वाली बात यह है कि जिस *प्रदेश में आदिवासियों की आबादी करोड़ों में है और विधायकों की संख्या विधानसभा में एक तिहाई से ज्यादा है ऐसे में आदिवासी छात्र- छात्राओं की उपेक्षा छत्तीसगढ़ सरकार पर आदिवासियों के प्रति उदासीनता के कई तरह के सवाल खड़े करते* हैं जिसको बड़े आसानी से समझा जा सकता है *छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से संचालित स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय को खोलें कुछ वर्ष ही हुए हैं जहां सुविधाओं को लेकर सरकार बहुत ही गंभीर एवं लगातार विद्यालय को हाईटेक बनाने का प्रयास कर रही है* प्रशासनिक अमला की बात करें तो लगातार इन विद्यालयों में *जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ-साथ कलेक्टर के लगातार दौरे होते रहते हैं छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री भी इन विद्यालयों में जाकर शिक्षा प्राप्त करते हुए नजर आ* सकते हैं परंतु आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के लिए खुले केंद्रीय विद्यालयों की उपेक्षा को लेकर सरकार की गंभीरता क्यों नहीं है क्या सरकार नहीं चाहती कि आदिवासी समुदाय के बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अपनी - अपनी भागीदारी देश निर्माण में कर सके यदि आदिवासी छात्र-छात्राओं के केंद्रीय विद्यालयों का यह हाल है ऐसे में इन विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के भविष्य कैसे होंगे इसे सहज ही समझा जा सकता है विडंबना देखिए छत्तीसगढ़ प्रदेश की शिक्षा मंत्री डॉक्टर प्रेमसाय टेकाम के विधानसभा क्षेत्र का एकलव्य आवासीय केंद्रीय विद्यालय कई तरह के सुविधाओं से वंचित है यहां पर 180 छात्र - छात्राओं को शिक्षा दिया जा रहा है *परंतु बैठने की व्यवस्था तक नहीं है लड़कियों के लिए नहीं बाउंड्री वाल की व्यवस्था है नहीं सुलभ शौचालय का निर्माण कराने में अभी तक विभाग सक्षम रहा है* , इस केंद्रीय विद्यालय में वर्तमान स्थिति में कक्षा 6 से 8 तक के 21 क्लास के छात्र - छात्राओं को पढ़ने एवं रहने की व्यवस्था नहीं है कोविड-19 की वजह से 2 वर्षों से ऐसे ही बच्चों की पढ़ाई प्रभावित रही है ऐसे में चयन परीक्षा को दे कर आदिवासी छात्र- छात्राएं इस एकलव्य आवासीय केंद्रीय विद्यालय में प्रवेश प्राप्त करते हैं प्रवेश प्रक्रिया में भी कई दौर आदिवासी छात्र - छात्राओं को चक्कर लगाना पड़ता है इतना चक्कर के बाद भी शिक्षा के नाम पर विद्यालय में सिर्फ छलावा के अतिरिक्त कुछ भी नजर नहीं आ रहा है जिसको देखकर साफ-साफ समझा जा सकता है कि यहां पर सिर्फ आदिवासी छात्र- छात्राओं के नाम पर केंद्रीय विद्यालय खोलकर सरकार सिर्फ आदिवासियों के साथ दिखावा एवं छलावा कर रही है यहां पर 1 विद्यालय के अतिरिक्त बलरामपुर जिले में 5 भवन विहीन है
पूरे *जिले में लगभग हजारों की संख्या में आदिवासी छात्र- छात्राएं* इस विद्यालय में अपना भविष्य गढ़ रहे हैं *लेकिन इनका भी भविष्य उस महाभारत के एकलव्य के समान ही है जैसा उस जमाने में पत्थर के गुरु को अपना गुरु मानकर आदिवासी भीलपुत्र एकलव्य ने शिक्षा के मंदिर (विद्यालयविहीन) जंगलों में जाकर प्राप्त किया ठीक उसी प्रकार आज भी एकलव्य आवासीय केंद्रीय विद्यालय के नाम पर आदिवासी छात्र- छात्राएं को (शिक्षा के मंदिर) विद्यालयविहीन भवन से शिक्षा प्राप्त करने को मजबूर हैं* सरकार की सुविधाओं के अनुरूप नजर डालें तो सरकार के द्वारा एकलव्य आवासीय केंद्रीय विद्यालय को शिक्षा के दृष्टिकोण सर्व सुविधा युक्त मानती है
जो सुविधा अन्य विद्यालयों के पास नहीं है ,, सरकार के एक ऐसे निर्णय पर भी बड़े सवाल खड़े होते हैं जिसके तहत ऑनलाइन क्लासेस प्रारंभ की है सरकार ने पहले इस बात का सर्वे कराया क्या कि *सभी बच्चों के पास एंड्रॉयड मोबाइल है या सरकार ने सभी बच्चों को एंड्राइड मोबाइल एवं डाटा दिए क्या* और यदि नहीं दिए तो आदिवासी छात्र छात्राओं से इस बात की उम्मीद करना ही बेमानी है कि वह ऑनलाइन क्लासेस से जुड़ कर पढ़ाई कर सकते हैं क्योंकि यदि आदिवासी इतने सक्षम होते की बच्चों के पढ़ाई के लिए प्रति माह ₹200 का रिचार्ज करा सकते हैं तो फिर सरकार के मुक्त चावल वितरण योजना चलाने की जरूरत ही क्या है और जब आदिवासी परिवार महीने में राशन उठाव के लिए पैसे नहीं जुटा पा रहा है ऐसे में अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए मोबाइल को रिचार्ज कैसे करा पाएगा या 10000 ₹ से 12000 हजार के मोबाइल को कैसे खरीदेगा इसके अतिरिक्त सभी ग्रामों में नेटवर्क की सुविधा है कि नहीं बगैर इन सुविधाओं को ध्यान में रखें ही ऑनलाइन क्लासेज के नाम पर शिक्षा से ठगे जा रहे हैं आदिवासी छात्र- छात्राएं ,, ऐसे में सरकार के सभी दावों के पोल खुल जाते हैं जिसके तहत सरकार आदिवासी छात्र - छात्राओं को ऑनलाइन क्लासेस की बात करती है यहां सवाल यह उठता है कि क्या सरकार उन छात्र-छात्राओं के लिए ऑनलाइन क्लास पढ़ने हेतु मोबाइल की व्यवस्था की है क्या उनमें डाटा पर्याप्त दिए हैं यदि हां तो आपका यह ऑनलाइन क्लासेस कहीं ना कहीं सफल होता हुआ नजर आएगा परंतु उन आदिवासी छात्र - छात्राओं को ऑनलाइन पढ़ाने की बात कर रहे हैं जिनके पास एंड्राइड मोबाइल तो छोड़िए बटन वाले मोबाइल भी नहीं है ऐसे में आपके ऑनलाइन क्लासेज सिर्फ दिखावा के साथ-साथ आदिवासियों के साथ छलावा नजर आ रहा है
वाड्रफनगर एकलव्य आवासीय केंद्रीय विद्यालय की बात करें तो यहां पर अभी वर्तमान में 180 छात्र - छात्राएं निर्धारित प्रक्रिया के तहत प्रवेश प्राप्त कर चुके हैं जिनमें 90 लड़कियां एवं 90 लड़के हैं क्या लड़कियों एवं लड़कों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहतर संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं जवाब में नहीं, यहां पर कक्षा 6 से लेकर 8 तक की क्लासेस संचालित हो रही हैं परंतु यहां पर सिर्फ कक्षा आठवीं के छात्र- छात्राओं के अतिरिक्त किसी भी क्लास के बच्चों को पढ़ने के लिए विद्यालय की व्यवस्था नहीं है इसके अतिरिक्त इस एकलव्य आवासीय केंद्रीय विद्यालय में रहने की भी व्यवस्था नहीं है ,, राज्य एवं केंद्र सरकार के बीच आदिवासी छात्र छात्राओं के लिए क्या कार्य योजना है यह कह पाना तो मुश्किल है परंतु इतना जरूर कहा जा सकता है की दो सरकारों के बीच पीस रहे हैं आदिवासी बच्चों का भविष्य ,, वहीं राज्य सरकार जितना स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों के लिए गंभीर नजर आती है उतना एकलव्य आवासीय केंद्रीय विद्यालय के लिए गंभीर नहीं यह समझ से परे है ऐसे में कैसे पढे़गा छत्तीसगढ़ नवा गढ़ छत्तीसगढ़ ।