जमाने को बदलने वाले ज़माना बदल गए हैं अली को मिटाने वाले खुद ही मीट गए।

सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना

रह गया काम हमारा ही बग़ावत लिखना

लाख कहते रहें ज़ुल्मत को न ज़ुल्मत लिखना

हम ने सीखा नहीं प्यारे ब-इजाज़त लिखना

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहां तख़्त-नशीं था

उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था

दीप जिस का महल्लात ही में जले

चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले

वो जो साए में हर मस्लहत के पले

ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता ।
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पत्रकारों की वह जमीन पर नजम . ....

उटठो मरने का हक इस्तेमाल करो कहने ।
सोच का एक दिया तो जला दिया
चेहरा ए तीरगी दिखा तो दिया ।
बे - जमीरी का और क्या मआलम अब कलम से इज़ारबंद ही डाल ।
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मोहब्बत की गोलियों से बो रहे हो ।
वतन का चेहरा खूं से धो रहे हो ।

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एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं ।
दूनिया वाले दिल वालों को और बहूत कूछ कहते हैं ।
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हुक्मरां हो गए कमीने लोग, ख़ाक में मिल गए नगीने लोग? .......
मैं जालिब देहलवी कहला नहीं सकता ज़माने में

बुख़ारी साहब ग़रीबों की इज्ज़त अमीरों से ज़्यादा नाजुक होती है.?

दुनिया में रह कर ही, दुनिया के साथ हमें दुनिया को समझना होता है और जज़्बातों से भरे शायर इस दुनिया को कैेसे देखते और समझते हैं, यह इन शायरी से समझते हैं।

आज भी बुरी क्या है कल भी ये बुरी क्या थी
इस का नाम दुनिया है ये बदलती रहती है
- अली

बदल रहे हैं ज़माने के रंग क्या क्या देख
नज़र उठा कि ये दुनिया है देखने के लिए
- अली

दुनिया पर शेर
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तेरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
- अली

बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले
- अली

दुनिया पर शेर
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
- अली

चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय
नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है
- अली

दुनिया पर शेर
दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़
एक ने अज्र दिया एक ने उजरत नहीं दी
- अली

दुनिया बदल रही है ज़माने के साथ साथ
अब रोज़ रोज़ देखने वाला कहाँ से लाएँ
- अली

दुनिया पर शेर
दुनिया बहुत ख़राब है जा-ए-गुज़र नहीं
बिस्तर उठाओ रहने के क़ाबिल ये घर नहीं
- अली

दुनिया बस इस से और ज़ियादा नहीं है कुछ
कुछ रोज़ हैं गुज़ारने और कुछ गुज़र गए
-अली

दुनिया पर शेर
दुनिया है सँभल के दिल लगाना
यहां लोग अजब अजब मिलेंगे
- अली

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
-अली

दुनिया पर शेर
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
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दुनिया में हम रहे तो कई दिन पर इस तरह
दुश्मन के घर में जैसे कोई मेहमाँ रहे

दुनिया पर शेर
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ.


दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले
- अली

दुनिया पर शेर
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं
- अली

दुनिया पसंद आने लगी दिल को अब बहुत
समझो कि अब ये बाग़ भी मुरझाने वाला है
- अली

दुनिया पर शेर
दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें
दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल
- अली

गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा
एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा
------------ अली .........

दूनिया की लिखाबट एक पेज की तरहा

ना नाजे सोच की पन्ना कब बदलेगी ।

पर लिखाबट रोज बदल जाता हैं ।(शायर अली)