आरोपी को सजा-ए-मौत, बच्ची से हैवानियत की घटना में डाक्टरों की गवाही ने ठोंकी आखिरी कील

बच्ची से हैवानियत की घटना में डाक्टरों की गवाही ने ठोंकी आखिरी कील
बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के आरोपी को पाॅस्को कोर्ट ने दी सजा-ए-मौत

सिरसागंज। हमारी न्याय व्यवस्था को कमजोर और सुस्त बताने वाले लोगांे के लिए मंगलवार का दिन राहत भरी खबर लेकर आया। अदालत ने आठ साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के बाद हत्या कर दिये जाने के अपराध मंे तेजी से सुनवाई करते हुए सजा-ए-मौत दे दी। बच्ची के शव का चिकित्सकीय परीक्षण करने वाले दो डाक्टरों की रिपोर्ट अदालत के फैसले के लिए ठोस आधार बना।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल मार्च महीने की 17 तारीख को रात मंे थाना सिरसागंज क्षेत्र के गांव चंदपुरा मंे 25वर्षीय युवक बंटू पुत्र अतर सिंह 8 साल मासूम बच्ची को दस रुपये का नोट देकर अपने चंगुल मंे फंसा ले गया था। उसने दुष्कर्म के बाद बच्ची की गला दबा कर हत्या कर दी। शव को गेंहूं के खेत मंे छिपा दिया। बच्ची के घर नहीं पहुंचने पर उसे पूरे गांव मंे ढूंढा गया। सुबह खेत मंे उसका शव मिला।
पुलिस ने घटना की सूचना पर अपराध संख्या 137/19 धारा 376, 302, 201 व 3/4 पाॅक्सो एक्ट के तहत अभियोग पंजीकृत कर लिया था। थाना प्रभारी निरीक्षक सुनील कुमार तोमर ने मामले की विवेचना करते हुए तथ्यों की बारीकी से जांच पड़ताल कर अदालत को यथास्थिति से अवगत कराया।
पाॅक्सो कोर्ट मंे ट्रायल के दौरान न्यायाधीश ने वकीलों के तर्क सुने और तथ्यों का संज्ञान लिया। पीड़िता की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अजमोद सिंह चैहान ने पुलिस द्वारा विवेचना मंे सौंपे गये तथ्यों को सिलसिलेवार तरीके से कोर्ट के समक्ष रखा और कठोर दंड देने की अपील की। इस दौरान बच्ची के शव का चिकित्सकीय परीक्षण करने वाले डाक्टर प्रदीप और डा साधना की रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण रही। डाक्टर प्रदीप की रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि बच्ची की गला दबा कर हत्या की गयी जबकि डाक्टर साधना की रिपोर्ट ने बलात्कार की पुष्टि की।
तथ्यों के आधार पर न्यायाधीश मृदुल दुबे ने अपना विस्तृत फैसला सुनाते हुए मंगलवार को आरोपी को मृत्युदंड की सजा सुना दी। हालांकि सूत्रों के अनुसार आरोपी सजा सुनाये जाने के बाद भी अपराध से इंकार कर रहा था।
इस मामले से जुडे़ विभिन्न पक्षों से बातचीत के बाद हमारे प्रतिनिधि का कहना था कि आरोपी की ओर से उसके परिवार वालों ने पैरवी मंे कोई खास रुचि नहीं ली। लेकिन पैरवी कर रहे अधिवक्ता मंसूर सिद्दीकी ने अदालत के समक्ष यह बताने का प्रयास किया कि आरोपी ने नासमझी मंे घटना को अंजाम दे दिया इसलिए वह कठोर दंड का भागी नहीं है। हालांकि अदालत की विस्तृत रिपोर्ट बताती है कि घटना के सूक्ष्मबिन्दु आरोपी को फांसी की सजा दिये जाने की पुख्ता रूप से पुष्टि कर रहे हैं।
अदालत के इस फैसले ने शासन की त्वरित न्याय की मंशा का उदाहरण भी पेश किया है। इस संबंध मंे पीड़िता के माता-पिता ने कोर्ट के आदेश को न्याय की जीत बताया है। उनका कहना था कि अगर आरोपी को सजा नहीं मिलती तो वह फिर निर्भीक होकर कोई अपराध कर सकता था।