प्रधान और सचिवों की हो ईमानदारी से जांच, नब्बे फीसदी होंगे जेल में।

मऊ - जी हां, यह हम क्या सुन रहे हैं कि अगर प्रधान और सचिवों की हो ईमानदारी से जांच, नब्बे फीसदी होंगे जेल में। जी बिल्कुल सत्य है, यह। अगर जनपद या प्रदेश स्तर के अधिकारियों से जनपद के समस्त ग्रामो के विकास कार्य की जांच अगर बिना किसी राजनीतिक दबाव व भेदभाव से की जाये तो लगभग नब्बे फीसदी प्रधान और सचिव साहब लोगो को जेल की हवा खाने से कोई भी नही रोक सकता। लेकिन जनता ऐसे निष्पक्ष जांच की उम्मीद शासन व प्रशासन से छोड़ दें, क्योंकि इनकी कमायी का कुछ हिस्सा इन अधिकारियों के पास भी जाता है। जनता विकास कार्य की बाट जोह रहे हैं और इधर प्रधान जी और बड़के वाले साहब यानि कि सचिव साहब लोग अपने विकास कार्य की रूपरेखा तैयार करने में लगे हैं। ग्रामो में एक योजना है कि अगर किसी भी ग्राम के विकास के लिए बैठक कर योजना तैयार कराना होता है, जिससे कि पूरे वर्ष ग्रामो में निर्बाध रूप से विकास कार्य कराया जा सके। विकास की योजनाओं को बनाना तो दूर, ग्रामीणों की बैठक कराना भी ये बड़के वाले अधिकारी मतलब सचिव साहब उचित नहीं समझते। अगर जनपद की समस्त ग्रामो की बैठक का ब्यौरा मांगा जाये तो कागज में तो बैठक होना दर्शा दिया गया। लेकिन वास्तविकता यह है कि किसी भी ग्रामीण से इस बैठक की जानकारी प्राप्त की जाये तो, उस ब्यक्ति द्वारा बैठक के बारे मे अनभिज्ञता जाहिर कर दी जाती हैं। अब जाहिर सी बात है कि इन दोनों विकास के जनको ने तो विकास किया, खूब विकास कार्य किया। लेकिन इसका लाभ जनता को कम और स्वयं को ज्यादा पहुचाने का विकास कार्य हुआ। आज अगर ग्रामो के विकास स्थिति का जायजा लिया जाये तो ज्यादातर ग्रामो में एक ही कार्य पर एक से अधिक बार भुगतान किये जाने का भी मामला सामने देखने को मिलेगा। ऐसा भी न समझे कि यह कार्य किसी एक प्रधान या सचिव द्वारा किया जाता है, अपितु इस कार्य में सभी लिप्त हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई दाल में नमक खाता है, तो कोई नमक में दाल। सरकार द्वारा ग्रामो को सशक्त बनाने के लिए जहाँ हर वर्ष एक जागरूकता अभियान चलाया जाता है, जिसमे जनता की मेहनत की कमाई को पानी में बहाने का कार्य किया जाता है। अब आप ही लोग बताये कि सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है, आखिर विकास वाली कृपा कहा रुकी है, बस इसी की खोज बाकी रह गयी है।