झूंठ फरेब धोखा और स्वार्थी मित्रता

झूंठ फरेब धोखा और स्वार्थी मित्रता
- जय और वीरू की मिशाल हो चुकी है वर्षो पुरानी अब तो निजी स्वार्थ सिद्ध करने के लिए बनाए जातें हैं नए रिश्ते
- लाभ के आधार पर किया जाने लगा है दोस्तों का चयन पियो पिलाओ खाओ और खिलाओ जैसी महफिलों में दी जाती है हर एक फ्रेंड जरूरीं होता है कि दुहाई
- बेबस बेसहारा से दूर जाती दिखाई देती है दोस्ती निभाने की परम्परा अमूमन स्वार्थवश अधिकांश खड़े दिखतें हैं अमीरी की चौखट पर दोस्ती का गुलदस्ता लिए हुए
- लोभी और स्वार्थी व्यक्ति बात बात पर खाते रहतें हैं दोस्ती निभाने की फरेबी कसमें वादों में स्वार्थ की वफ़ा और दिल में बेवफाई कर चुकी है अब अपना घर
- दो पैर वालों की तुलना में चार पैर वाले दिखतें हैं ज्यादा वफादार कम से कम उनकी आंखों में तो नही दिखती स्वार्थ और लालसा की चमक
(रितुराज राजावत):
पैसा पावर और पॉलिटिक्स ये पूर्व में भी प्रचलन में थे और आज भी हैं। न काहू से दोस्ती और बैर वाली कहावत हाल फिलहाल पूर्णरूप से बहुत पुरानी हो चुकी है अब दोस्ती वाला माहौल उसी व्यक्ति के साथ बनाया जाता है जो इन तीन विशेष पद्धतियों में से एक का महारथी हो । मेरे भाई जैसे वाक्य पर स्वार्थ उसी तरह आज हावी हो चुका है जैसे कि आईपीएल में धोनी। स्वम् के हित को दृष्टिगत रखते हुए अब मित्रता का स्वांग उसी व्यक्ति के साथ रचाया जाता है जिससे विशेष परिस्थितियों में विशेष लाभ सिद्ध हो सकें । शुक्र है जो त्रेतायुग में इस स्वार्थरूपी परम्परा का उपार्जन नही हुआ था अगर हुआ होता तो भगवान राम और सुग्रीव की न ही मित्रता होती और न ही मर्यादापुर्षोत्तम को रावण की लंका में दोबारा माता सीता मिलतीं । हाल फिलहाल कलयुग अपनी चरम सीमा में गतिमान है जहां जिसको जैसे मौका मिले तत्काल अपने निजी हितो के प्रति कटिबद्ध रहते हुए पैसा पावर और पोलिटिकल रसूखदारों से बिना समय गवाए हुए दोस्ती रूपी व्यवहार बना डालिए । इसके दो फायदे होंगे एक तो आपका समयानुसार समाजिक ओहदा बढ़ जाएगा और दूसरा आपके निजी स्वार्थ भी सिद्ध होते रहेंगे । यदि आप इन दोनों विकल्पों से कदापि सन्तुष्ट नही है तो चार पैर वालों को पालने की आदत डाल लीजिए क्योकि इंसानों की तुलना में जानवर ज्यादा वफादार होतें हैं ।