त्याग, बलिदान, अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप

इगलास। परोपकार सामाजिक सेवा संस्था द्वारा गांव तोछीगढ़ में आज त्याग, बलिदान, अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप जी की 485वीं जयंती शौर्य दिवस के रूप में मनाई गई और साथ ही महान स्वतंत्रता सेनानी एवं नरम दल के प्रमुख नेता व विचारक गोपाल कृष्ण गोखले जी की 159वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम में ग्रामीण युवाओं ने महाराणा प्रताप जी के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर उनके जीवन से प्रेरणा लेकर विषम परिस्थितियों में भी अन्याय के सामने सिर ना झुकाने का संकल्प लिया।

संस्था के अध्यक्ष जतन चौधरी ने बताया कि महाराणा प्रताप को समस्त देशवासी त्याग, बलिदान, निरंतर संघर्ष और स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में सदैव याद करते हैं।उन्होंने आदर्शों, जीवन मूल्यों एवं स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व दाव पर लगा दिया था। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ़ संकल्प के लिए अमर है। उन्होंने कभी भी मुगल शासक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया था। जुबां पर महाराणा प्रताप का नाम आते ही मन में स्वाभिमान वाले स्वातंत्र्य-प्रेम के भाव जाग्रत हो जाते हैं। महाराणा प्रताप का जीवन स्वतंत्रता प्रेमियों को सतत् प्रेरणा प्रदान करने का अनंत स्रोत है। उनका वीरतापूर्ण संघर्ष साधारण जनमानस के मन में सदैव उत्साह की भावना जाग्रत करता रहेगा। शिक्षक प्रदीप कुमार शर्मा ने बताया कि गोपाल कृष्ण गोखले, देश के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे।

देश की पराधीनता गोपालकृष्ण को सदैव कचोटती रहती थी। राष्ट्रभक्ति की अजस्र धारा का प्रवाह उनके अंतर्मन में सदैव बहता रहता। इसी कारण वे सच्ची लगन, निष्ठा और कर्तव्यपरायणता की त्रिधारा के वशीभूत होकर कार्य करते और देश की पराधीनता से मुक्ति के प्रयत्न में लगे रहते थे। गोपालगढ़ कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का 'ग्लेडस्टोन' कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी नेता थे। चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णतः सहमत होकर उन्होंने 1905 में सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी भी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। इस अवसर पर सागर जादौन, लकी ठैनुआं, दीपक चौधरी, प्रियांशु ठैनुआं, रिषभ प्रताप सिंह, गौरव चौधरी, प्रशांत ठैनुआं, शशांक, सूरज, साधना आदि मौजूद रहे।